आरक्षण - वरदान या श्राप ?

भारत में आरक्षण की शुरुआत 1919 के भारत सरकार अधिनियम ने 1919 में की थी। 1921 में मद्रास प्रेसीडेंसी द्वारा जारी एक कमिटी ने गैर-ब्राह्मणों को 44%, मुसलमानों को 16%, एंग्लो-इंडियन ईसाइयों को 16% और 8% अनुसूचित जाति को आवंटित किया था। समय के साथ आरक्षण के प्रावधान में कई बदलाव लाए गए और आज यह कुछ इस प्रकार है - अनुसूचित जाति को 15%, अनुसूचित जनजाति को 7.5%, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% और आर्थिक कमजोर वर्ग को 10% का आरक्षण आवंटित किया गया है जो कुल मिला कर 59.5% बन जाता है और अगर इसमें बेंचमार्क अक्षमता का 4% जोड़ दिया जाए तो यह बन जाता है 63.5% । 



आरक्षण के ऊपर अगर चर्चा की जाय तो इसके कई सारे पहलू सामने आएंगे कुछ लोगों के हिसाब से यह बहुत जरूरी है तो कुछ लोगों के हिसाब से आरक्षण की वजह से जो काबिल और मेहनती लोग सामान्य वर्ग से आते है वह लोग कही भी सेलेक्ट नहीं हो पाते और उनसे कम अंक लाने वाले आरक्षित लोग सेलेक्ट हो जाते हैं। परंतु मेरा मानना इन दोनो पहलुओं से अलग है क्योंकि आज भी देश में काफी तादात में लोग हैं जिन्हें आरक्षण की सख्त जरूरत है जिससे वह लोग अपने छेत्र और अपने परिवार के लोगों को गरीबी और निरक्षरता से निकाल सकें लेकिन वहीं वह लोग भी हैं जिनके परिवार में उनके माता पिता अच्छे औदे पर हैं परंतु वह लोग अभी भी आरक्षण का इस्तेमाल करते हैं जिसकी उन्हें जरूरत नहीं है। इसीलिए मेरा मानना है की आरक्षण का प्रावधान सिर्फ उन्ही के लिए होना चाहिए जिन्हें उसकी सख्त जरूरत हो अन्य सभी लोगों को सामान्य श्रेणी में मुकाबला करना चाहिए इससे जो सामान्य वर्ग के लोग हैं जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, आदि उनके साथ नाइंसाफी भी नहीं होगी और आरक्षण का लाभ उन सभी लोगों तक पहुंचेगा जिन्हे इसकी सख्त जरूरत है।

लेकिन आज की दशा देखते हुए मुझे नहीं लगता है की कोई भी सरकार इस कदम को उठाएगी, सभी राजनैतिक पार्टियां अपना वोट बैंक बनाने में लगी रहती हैं जिससे वह अगले कई सालों तक सत्ता में रहें परंतु इसके बीच में वह लोग देश हित में किए जाने वाले कार्यों को भूल जाते हैं। आरक्षण को वरदान या श्राप कहना यह नहीं दर्शाता है की आरक्षण बुरा है अच्छा, जिस व्यक्ति को आरक्षण की वजह से पढ़ने का अवसर और सरकारी नौकरी प्राप्त हुई उसके लिए आरक्षण वरदान स्वरूप है जिसकी मदद से आज वह व्यक्ति अपने परिवार को फलता-फूलता देख पा रहा है, अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा पा रहा है। वहीं अगर बात करें सामान्य वर्ग के किसी व्यक्ति की जिसने जी जान लगा कर मेहनत से पढ़ाई तो की मगर नौकरी हासिल नहीं कर पा रहा है जिसकी वजह से वह अपने बूढ़े माता-पिता का इलाज भी नहीं करवा पा रहा है और दो वक्त की रोटी के लिए डिग्री होने के बावजूद भी छोटी मोटी नौकरी करके अपना गुज़ारा कर रहा है, उस व्यक्ति के लिए आरक्षण श्राप नहीं तो क्या है। 



समय के साथ नेता बदलते हैं, सरकारें बदलती हैं मगर मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले उस अनारक्षित नौजवान का सबसे बड़ा दुश्मन यानी आरक्षण कभी नहीं बदलता है। इसीलिए आरक्षण के खिलाफ आवाज उठाना और केवल जरूरतमंदों तक ही इसका लाभ पहुंचाना अत्यंत आवश्यक है।

जय हिंद, जय भारत 🙏

जय श्री राम 🚩


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